Sunday, June 28, 2015

Paanch Rupaye...


पाँच  रूपय  … 

आज शाम को लैब में बैठे हुए , अचानक कुछ याद आया और मैं अपना बैग टटोलने लगी।  न जाने कहाँ से छुपा हुआ पांच रूपये का सिक्का पॉकेट के  एक कोने  से झाँकने लगा और मेरे मन्न में जैसे सैंकड़ों ही यादों  और नजाने कितनी ही बातोँ का तूफ़ान फूट पड़ा ।  घर से कोसों दूर, दुनिया के दूसरे छोर पे बैठे हुए मानो मेरा पूरा बचपन ही वापस आ गया हो. वो सारी saturday afternoons और बहन के साथ झिकझिक जैसे कल की ही बात हो।  स्कूल में हाफ डे और बहन और मेरी ऐश।  मम्मी से दोनों को पांच पांच रुपये मिलते थे और जिस दिन किस्मत अच्छी, उस दिन तो तो  डबल मज़े! दस रुपये भाईसाहब , दस रुपये! lays का छोटा  पैकेट और ब्लू pepsi! जो पांच रुपये बचे उसमे टॉफ़ी और अरबपती गोलियां। क़ोइ तोड़ है इन नवाबी ठाठ का? बहन  टीवी  खोल  के बैठ जाती थी और मैं कोई नावेल। कूलर और ac में बैठे हुए, उन छोटी छोटी चीज़ों के मज़े लेते हुए , जाने ही कितनी दोपहर बीती हैं। अब सोचती हूँ तो रोने का जी करता है।  वो मई - जून की छुट्टियां .वो गर्मी में, कमरे में बितायी हुई शामें, ज़मीन पे बैठ के तरबूज़ खाना और रसना ... हर  बार अलग फ्लेवर...और फिर लीची भी तो थीं और milkshakes ...आह! रात में चबड्डी खाने निकल जाया करते थे पापा की कार में...जिसका मतलब था लौटते पे आइस क्रीम मिलेगी !
                             क्या दिन थे वो बचपन के , जब पैसे कम थे और हम अमीर थे। 

     ज़माना बीत गया और हम बड़े हो गए।  मैं बाहर  पढ़ने आ गई।  बहन  भी अब बड़ी हो गई है। पर हमारा वो रिश्ता अभी भी बरक़रार है।  अभी भी रोज़ बात होती है, अभी भी  वही
नोक -झोक , वही लड़ाई और वही प्यार।  पर पता नहीं आगे जाके यह संभव होगा की नहीं। सोचती हु समय को रोक लूँ , इस्से ज़्यादा और क्या ही बड़ा होना है। लेकिन जानती हूँ , यह संभव नहीं। जब छोटे थे तो बड़े होने की होड़ थी, अब बड़े हो गए तो वापस बच्चे बन जाने की ख्वाहिश है।  यही है मनुष्य प्रवृत्ति शायद। पर इस सिक्के ने आज ज़िन्दगी जीने के मायने याद दिल दिए। बचपन को ऐसे याद करेंगे , वो दिन फिर नहीं लौटेंगे , ये जानती तोह  शायद कुछ ज़्यादा जी लेती उस वक़्त को। आज का सबक है कि इस समय को ऐसे ही न जाने दूँ। भविष्य के ख्यालों में आज को ज़ाया न करूँ।  आज ज़िन्दगी को फिर से उसी ख़ुशी , उसी मासूमियत से जी लूँ।

   अभी लैब  में बैठी हूँ और 8 बज गए हैं। बचपन की यादों में जाने कहाँ टाइम निकल गया... काम वैसे का वैसा ही पड़ा है पर दिल खुश है। आज एक पाँच रुपये के सिक्के ने मेरा खोया बचपन लौटा दिया.....